लकीरें


पापा के जेब से पेन छीनकर,

दौडी चली जाती है गुड्डी

अपने कमरे में,

होमवर्क जैसी तमाम

बेहूदा बातों को छोडकर,

कापी के पिछले वाले कुछ पन्ने

फाडकर

मुस्काती हुई आँखों से,

लग जाती है कुछ अजीबोगरीब कारनामों में,

उगते हैं टेढ़े मेढ़े फूल कागज़ 

की जमीनों पर,

दो मंजिला स्कूल बनाकर पीछे

चश्मेवाले सूरज को टांगा जाता है,

उसकी सहेलियों के नाक कान चपटे हो जाते हैं,

तो टीचरें और भी मोटी..!

गुस्सैल कुत्ते की पूँछ को

फर्र से बडी कर के खिंचा जाता है,

किसी कोने के पेड़ पौधों को पानी

देते देते स्याही खत्म हो जाती है,

इसी बीच खिंची जाती हैं

कई लकीरें उसके

चेहरे-हाथों-पेशानी पे,

पर कोई इन्हें समेटकर 

पेंटिंग में सजाए,

तो मेरा दावा है,

पिकासो और अँजेलो ने

यकीनन आज हार मान ली होती…!!

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