परचम


पहाड़ की चोटी पर पहुँचना

किसी हैरतअंगेज़ कारनामे से कम नहीं..

फिज़ाओं की साँस फूलने लगती है,

बर्फीली रातों के मौसम में तो

मुसलसल परेशानियाँ टपकती हैं,

परिंदों की उडानें सर्द हो जाती हैं,

सहर में दूधिया कोहरा अपने

करतब के खेल दिखाता है,

रगों में खूँ जम जाता है

दिल ओ दिमाग भारी लगता है,

फिसलनें औकात दिखाती हैं

गहरी खाई के बीचोंबीच

मौत की सहेली रहती है,

पर एक उम्मीद..

जिस्म पर जख्मों का बोझ लिए,

हौसले की चादर ओढ़े,

पार करती है मुश्किलें..

चोटी पर जिंदगी का

परचम लहराता है!

जिंदगी जीतती है!!

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