मुश्किलें भरी हैं,रास्ते के सफर में,
कोई रेहनुमा की पहचान तो कराए..
बेनूर अंधेरों के घने काले डेरे,
कहीं से तो चरागों की लौ जगमगाए..
सदियों से सूखी बंजर जमीं हैं,
कहीं पे तो बारीश गुनगुनाके जाए..
कानों में बिलखते हैं गूँगे सन्नाटे,
किसी बाग़ में कोयल धीमे से गाए..
पत्तों के गिरने से फैले हैं कुछ रंग,
कोई तो उठाके कैनवास सजाए..
बडी देर से हैं लफ्ज़,सोचों में कैद,
कोई तो चुराके नज़्मों में पिरोए..
उधड़ी हुई है, ज़िंदगी की ये सीलन,
कोई दर्जी हो,जो इसको सिलाए..
बिखरी हुई हैं,हाथों पे इतनी लकीरें,
कोई तो खुदा से, इनकी शिकायत कराए!!!
koi to….MAST SIR…
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Thanks bhava!!!
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Behtareen…👌👌
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Shukriya!!
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वाह वाह! क्या खूब बात कही……
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शुक्रिया दोस्त!!
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वाह बेहतरीन ,. बुनेर अंधेरों के काले डेरे .. क्या ख़ूब कहा .. Khoobsurat
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Thank you for your kind words!!
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My pleasure
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