नीचे बिखरे पड़े
हरे लॉन को,
छाँव की चादर
पहनाता गुलमोहर का पेड़,
जब भी गिराता है
पकी हुई टहनियों से
सुर्ख़ रंगों के फूल…
यूँ लगता है की,
गाँव की किसी
बाली उमर की चंचल
लड़की ने पहना है
हरा लिबास..
और ओढ़ लिया है
लाल फूलोंवाला मलमली दुपट्टा..!
बारिश के मौसम में
जब पत्तों से टपकते आबशार
परेशाँ करते हैं लॉन के जिस्म को..
तब एक सवाल
बार बार सर कुरेदता है..
उस लड़की के
माँ बाप ने उसे क्यूँ
डाँट दिया?
रो रोकर लिबास
गिला कर दिया..दुपट्टा बेहाल है..
या किसी बादलों सी आँखों वाली
सहेली के साथ उसका
झगड़ा तो नहीं हुआ??
लाजवाब। बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति।दिल को छु गयी ये पंक्तियाँ और इस चित्र ने कई यादें ताज़ा कर डाली।
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बहोत बहोत शुक्रिया!!
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Wah bhaw la jayab hain .. Beautiful imagination
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Thank you!!
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Welcome
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